earthquake in afghanistan
अफगानिस्तान में मंगलवार की आधी रात को 6.1 तीव्रता का एक विनाशकारी भूकंप आया। पिछले दो दशकों में यह सबसे भयावह भूकंप माना जा रहा है, जिसमें कम से कम हजार लोगों की मौत हो चुकी है और कितने बड़े पैमाने पर तबाही हुई है, इसका आकलन इतने जल्दी नहीं हो सकता। अफगानिस्तान के पकतीका और खोस्त इलाके में चारों ओर बर्बादी का आलम है। कई गांव खंडहर में बदल चुके हैं और इमारतों के मलबों में दबे इंसानों और जानवरों को बचाने के लिए मदद पहुंचाना भी मुश्किल हो गया है। हर दिशा में मातम पसरा दिख रहा है। भूकंप प्रभावित इलाकों के आसपास से गांव वाले मदद के लिए पहुंच तो रहे हैं, लेकिन बिना किसी खास उपकरण के, खाली हाथों से कांक्रीट और लकड़ियों का मलबा उठाना आसान नहीं है। सड़कें और मोबाइल टावर उखड़ चुके हैं, ऊपर से बारिश के कारण राहत सामग्री पहुंचाना भी मुश्किल हो रहा है। अफगानिस्तान में आम जनता के लिए हालात पहले ही नारकीय बने हुए हैं। गरीबी और भुखमरी की समस्या के साथ-साथ तालिबान का आतंक भरा शासन लोगों के जीवन को कठिन बना रहा है, उस पर से प्राकृतिक आपदा ने हालात और बिगाड़ दिए हैं।
प्राकृतिक आपदाओं पर किसी का भी जोर नहीं चलता। कितनी भी शक्तिशाली सरकार भूकंप या सुनामी जैसी आपदाओं को रोक नहीं सकती है, लेकिन अपनी मजबूती वह इन आपदाओं के दौरान लोगों तक अधिक से अधिक मदद पहुंचाकर दिखा देती है। अफगानिस्तान की जनता इस मदद से भी वंचित है। क्योंकि यहां पहले से प्रशासनिक और अधोसंरचना के स्तर पर कई सारी कमियां हावी हैं। तालिबान सरकार ने अपने संकुचित रवैये के कारण इस सुंदर और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देश का बुरा हाल करके रखा है। लड़कियों और महिलाओं पर तरह-तरह की पाबंदियां हैं। कहीं उनके पढ़ने पर फरमान जारी होते हैं, कहीं सार्वजनिक स्थल पर घूमने जाने के। तालिबान अपना सारा जोर धार्मिक कट्टरता और मध्ययुगीन मानसिकता को बढ़ाने में लगाए हुए है। जब तालिबान सत्ता में नहीं था, तब भी अफगानिस्तान में हालात अच्छे नहीं थे। गृहयुद्ध, आतंकवाद और विदेशी ताकतों की दखलंदाजी ने अफगानिस्तान का खूब नुकसान किया है, जिसमें सबसे अधिक अफगान जनता को भुगतना पड़ा है। विकासशील और विकसित देशों में जिस जीवनशैली को सामान्य माना जाता है, वह अफगानिस्तान के लोगों के लिए विलासिता के समान है। रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, कारोबार, खेल ऐसे तमाम क्षेत्रों में अफगानियों को मामूली सफलताएं हासिल करने के लिए भी जूझना पड़ता है और अब तालिबानी शासन आने के बाद हालात बदतर हो चुके हैं। तालिबान ने धार्मिक कट्टरता के जोर पर सत्ता तो हथिया ली, लेकिन देश उदार मानसिकता से चलता है, ये बात अब उन लोगों को समझ आ रही होगी।
अफगानिस्तान में आए भूकंप के बाद अब वहां की तालिबान सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मदद की गुहार लगानी पड़ी है। तालिबान सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि सरकार लोगों को उतनी वित्तीय मदद देने में सक्षम नहीं है, जितनी उन्हें ज़रूरत है। जब एक बड़ी मुसीबत सिर पर आई है, तो तालिबान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय का महत्व शायद समझ आ रहा होगा। पिछले साल जब तालिबान ने जोर-जबरदस्ती से अफगानिस्तान की सरकार पर अपना दावा ठोंक दिया था और उसके बाद आतंक का राज कायम करने की कोशिश की, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अफगानिस्तान की इस नई सरकार का बड़े पैमाने पर बहिष्कार हुआ था। बहुत से देशों ने अफगानिस्तान को विकास के लिए दिए जा रहे सहयोग कार्यक्रमों पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद तालिबान को कट्टरता की ताकत पर शायद यकीन था, इसलिए संकुचित और रूढ़िवादी मानसिकता से प्रेरित फैसले लिए जाते रहे, जिसमें मानवाधिकार, स्त्री अधिकार, बाल अधिकार सबका खुलकर हनन होता रहा। लेकिन अब एक बड़ी मुसीबत की चपेट में देश आया है, तो शायद तालिबान सरकार को इस बात का अहसास हो कि शिक्षा, विज्ञान, तकनीकी आदि का जीवन में कितना महत्व है, जो हर किसी को बिना किसी भेदभाव के हासिल करने का मौका मिलना चाहिए।
वैसे तालिबान सरकार होने के बावजूद अफगान लोगों की मदद करने की कोशिश अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियां कर रही हैं लेकिन बुरी संचार व्यवस्था और बारिश के कारण चुनौतियां बढ़ गई हैं। ज़रूरतमंदों तक भोजन, दवाइयां और आपातकालीन आश्रय पहुंचाने पर ध्यान दिया जा रहा है। यूनिसेफ़ ने अपनी मोबाइल और स्वास्थ्य एवं पोषण टीम को प्रभावित ज़िलों में भेज दिया है ताकि वे घायलों को प्राथमिक उपचार दे सकें। राहत और बचाव की ये कोशिशें धार्मिक और लैंगिक भेदभाव को परे रखते हुए की जा रही हैं।
भूकंप से मची भारी तबाही से अफगानिस्तान कैसे और कब तक उबर पाएगा, ये बड़ा सवाल है। लेकिन उससे भी बड़ा सवाल ये है कि क्या भूकंप के इस भयावह झटके के बाद क्या तालिबान अपने हिंसक और कट्टर रवैये को छोड़ेगा।